नई दिल्ली। रूस के बाद अब चीन के हैकर अमेरिका के लिए एक बड़ी समस्या बन गए हैं। बता दें, जिस समय अमेरिका चीन के जासूसी गुब्बारों को गिराकर उसके डेटा को जांचने की तैयारी कर रहा था। इसी दौरान अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई और टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के डेटा को चीन के हैकर हैक करने की कोशिश में लगे हुए थे। इसकी जानकारी अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने दी है।
सीआईए के अधिकारियों का कहना है कि, चीन द्वारा किए गए हमले में सबसे ज्यादा चिंता की बात ये थी कि जिस कंप्यूटर कोड को हैकरों ने अमेरिकी सिस्टम में डालना शुरू किया, वह गुआम के टेलीकम्युनिकेशन सिस्टम में भी पाया गया। ये बात डराने वाली इसलिए भी है, क्योंकि गुआम अमेरिका के सबसे बड़े एयरबेसों में शामिल है, जिसके नियंत्रण में प्रशांत महासागर में सबसे अहम बंदरगाह आते हैं।
हैकिंग को लेकर माइक्रोसॉफ्ट के मुताबिक, इस कोड को अमेरिकी सिस्टम में चीन की सरकार से जुड़े एक हैंकिग समूह ने डाला था। उसकी इस कोशिश की जानकारी मिलने के बाद अमेरिकी सुरक्षा विभाग में हलचल मच गई। अफसरों का कहना है कि जिस एयरबेस में ये हमला हुए वो एक तरह से अमेरिका और एशिया के बीच सुरक्षा पुल का काम करता है।
यानी ताइवान पर अगर चीन की ओर से कोई हमला किया जाता है, तो गुआम एयरबेस अमेरिकी सैन्य प्रतिक्रिया का सबसे अहम केंद्र होगा। चीन की ओर से गुआम की सुरक्षा प्रणाली को निशाना बनाने के बाद ये चिंता जताई जा रही है कि किसी भी तरह की युद्ध की स्थिति में चीनी हैकर्स अमेरिका के एयरबेसों को निशाना बनाकर उसे खत्म करना चाहते हैं।
माइक्रोसॉफ्ट ने इस हैकिंग कोड की जानकारी भी प्रकाशित की है। बताया गया है कि इस हैकर समूह का नाम वोल्ट टाइफून है। इस समूह को चीन की ओर से ही दूसरे देशों के अहम टेक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे संचार, विद्युत और गैस से जुड़े संसाधनों को निशाना बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। इतना ही नहीं इस नौसैनिक अभियानों और परिवहन व्यवस्था को भी बिगाड़ने के लिए कहा गया है। गुआम में हुई घटना को अमेरिकी अधिकारियों ने जासूसी से जुड़ा मुद्दा माना है। ये भी कहा गया है कि चीन के हैकर इस कोड को सिस्टम का सुरक्षा घेरा तोड़ने और इसके बाद तबाही वाले हमले कराने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।